नया रंग मुजफ्फरपुर की ओर से किलकारी बिहार बाल भवन पटना में ‘कुरुक्षेत्र’ के युद्ध और शांति का अनोखा संगम पेश किया गया।

नया रंग मुजफ्फरपुर की ओर से राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की ‘कुरुक्षेत्र‘ का निर्देशन हरिशंकर रवि ने किया। रविवार को किलकारी बिहार बाल भवन पटना में नाटक राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध रचना ‘कुरुक्षेत्र’ का नाट्य मंचन किया गय। इस रचना के माध्यम से राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर ने युद्ध को लेकर समाज के समक्ष सवाल उठाए हैं।
विषयसूची
नाटक के निर्देशक हरिशंकर रवि:

भारत के जानेमाने नाट्य निर्देशक में एक, युवा निर्देशक और रंगकर्मी हरिशंकर रवि अपने अलग सोच और नए-नए रचनात्मक कामों के लिए जाने जाते हैं। हरिशंकर रवि ने National School Of Drama से अपनी पढ़ाई पूरी कर देशभर में अपने कला का प्रदर्शन कर अपनी पहचान बनाई हैं। हरिशंकर रवि ने बहुत से नाटक का निर्देशन किया हैं। उनमें कुछ मुख्य नाटक जैसे – ख्वाहिश गली, डॉ तुलसी राम आत्मकथा (मुर्दहिया) वगैरह ………वगैरह
नाटक के सम्बंध में परिचय या कुरुक्षेत्र का कथासार:
रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध रचना ‘कुरुक्षेत्र’ का प्रकाशन 1946 में हुआ था, ‘कुरुक्षेत्र’ महाकाव्य सात सर्गों में है। इस रचना के माध्यम से कवि रामधारी सिंह दिनकर ने युद्ध को लेकर समाज के समक्ष सवाल उठाए हैं। कुरुभूमि के भीषण संग्राम के बाद कौरवों की चिता के सामने रोने के लिए एक बूढ़े और अंधे व्यक्ति के सिवा कोई शेष नही रह गया था। एक लड़खडाता स्वर युधिष्ठिर को सुनाई देता है। कुरुक्षेत्र’ का युधिष्ठिर ‘गीता’ का अर्जुन है। दोनों में अंतर यह है कि अर्जुन की यह स्थिति युद्ध के पहले हो गई थी,

जबकि युधिष्ठिर की युद्ध के पश्चात। दिनकर जी ने ‘कुरुक्षेत्र के अंतर्गत कई सवाल उठाए हैं, भीष्म और युधिष्ठिर का आलंबन लेकर। उनके भीष्म और युधिष्ठिर महाभारत के भीष्म और युधिष्ठिर नहीं हैं। कारण महाभारत के प्रसंग को दोहराना उनका उदेश्य नही हैं। बल्कि भारतीय जनमानस में प्राण फूंक कर उसे ब्रिटिशो के विरोध में खड़ा करना था। इस संदर्भ में सुनीति का कथन दृष्टव्य है,
भारतीय जनमानस अर्जुन की तरह व्यामोह में फंसा हुआ था। वह कर्तव्यविमूढ़ होकर एक भीषण रक्तपात की काल्पनिक स्थिति से बचने के उदेश्य से भारत माता के विभाजन को अंगीकृत करना चाहता था। ऐसे समय दिनकर की वाणी से ‘कुरुक्षेत्र की जो गीता प्रस्फुटित हुइ है, भले ही उसका प्रभाव तत्कालीन समाज पर इतनी तीव्रता से न पड़ा हो, किंतु स्वतंत्र्ता प्राप्ति के उपरांत आज दिनकर की कुरुक्षेत्रीय भावना शासन व जनता दोनों को समान रूप से पथ-प्रदर्शन करती हई दृष्टिगोचर हो रही है।

कलाकार मंच पर,
लाडली राय, बलराम कुमार यादव, प्रवीण कुमार, गोविंद कुमार, प्रत्युष पराशर, शिवांक, हाफिज अली, कृष्णा कुमार, विशाल, कुमार गुप्ता, सत्यम मिश्रा, रवि कुमार, रामपत कुमार चौधरी

कलाकार मंच परे,
संगीत निर्देशन:- रोहित चंद्रा
नगाड़ा:- प्रेम पंडित
ढोलक:- कुमार स्पर्श मिश्रा
हारमोनियम:- चंदन उगना
झाल:- राकेश कुमार चौधरी
तकनीकी सहयोग:- विनय चौहान
विडियो:- मोहम्मद एजाज़
सेट निर्माण:- सुनील शर्मा
प्रस्तुति प्रबंधक:- इंद्रभूषण कुमार
प्रकाश परिकल्पना:- राहुल कुमार रवि
काव्य कृति:- राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर
सहायक निर्देशन:- कुमार स्पर्श
परिकल्पना एवम् निर्देशन :- हरिशंकर रवि
आभार:- किलकारी बिहार बाल भवन, पटना
सहयोग:- अभिषेक राज ड्रामेबाज, कृष्णा कुमार
विशेष आभार:- राजू मिश्रा
निष्कर्ष:
रामधारी सिंह दिनकर की ‘कुरुक्षेत्र’ केवल एक युद्ध महाकाव्य नहीं है, बल्कि यह जीवन, समाज, धर्म और नैतिकता पर गहरी चिंतनशील रचना है। इसमें युद्ध और शांति के बीच के संतुलन को खोजने की कोशिश की गई है। राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर ने इस महाकाव्य के माध्यम से हमें यह संदेश दिया है कि शांति ही मानवता का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए, और इसे पाने के लिए हमें अपनी सोच और विचारधाराओं को व्यापक बनाना होगा।
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