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2 Jul 2025, Wed

छठ पूजा की कहानी और इसके पीछे का पौराणिक रहस्य – जानें इसके अनसुने

छठ पूजा

छठ पूजा भारत के सबसे प्राचीन और पवित्र त्योहारों में से एक है, जिसे विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के तराई क्षेत्रों में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया की आराधना का प्रतीक है। छठ पूजा चार दिनों का उत्सव होता है, जिसमें श्रद्धालु कठिन व्रत और नियमों का पालन करते हैं। इस पूजा के पीछे पौराणिक कथाओं और धार्मिक मान्यताओं का गहरा महत्व है। आइए जानते हैं इस पर्व की कहानी और इसके पीछे के पौराणिक रहस्यों को विस्तार से।

छठ पूजा

छठ पूजा की कहानी

छठ पूजा की शुरुआत को लेकर कई प्रचलित कहानियाँ और पौराणिक कथाएँ हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख कहानियाँ इस प्रकार हैं:

छठ पूजा
  1. कर्ण की कथा
    महाभारत में कर्ण का जिक्र आता है, जो सूर्य देव का परम भक्त था। कहा जाता है कि कर्ण प्रतिदिन घंटों तक पानी में खड़े होकर सूर्य देव की आराधना करते थे और उनसे शक्ति व तेज की प्राप्ति के लिए छठ व्रत करते थे। इसी कारण यह पूजा सूर्य देव को समर्पित मानी जाती है और कर्ण के तपस्वी रूप का अनुसरण करने वाले आज भी सूर्य देव की पूजा में पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते हैं।
  2. रामायण की कथा
    एक अन्य कथा के अनुसार, जब भगवान राम और सीता माता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे, तो उन्होंने राज-पाट का भार संभालने से पहले सूर्य देव की आराधना करने का निश्चय किया। सीता माता ने तब छठ व्रत का पालन किया था। इस कथा के अनुसार, छठ पूजा को धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सीता माता द्वारा आरंभ किया गया माना जाता है।
  3. छठी मैया की कथा
    पौराणिक कथा के अनुसार छठी मैया को प्रकृति की देवी और संतान सुख की देवी माना जाता है। कहा जाता है कि जो महिलाएँ संतान प्राप्ति या संतान की सुख-समृद्धि के लिए व्रत करती हैं, छठी मैया उनकी मनोकामनाएँ पूर्ण करती हैं। कई स्त्रियाँ संतान सुख की प्राप्ति के लिए इस व्रत का पालन करती हैं और छठी मैया से अपनी मनोकामना माँगती हैं।
  4. द्रौपदी और पांडवों की कथा
    महाभारत के अनुसार, एक समय द्रौपदी और पांडव वनवास में कष्ट झेल रहे थे। तब ऋषि दुर्वासा के कहने पर द्रौपदी ने छठ व्रत का पालन किया, जिसके बाद उन्हें और उनके परिवार को अनेक कष्टों से मुक्ति मिली। इस तरह से छठ पूजा को दुख, संकट और रोगों से मुक्ति का पर्व भी माना जाता है।
छठ पूजा

छठ पूजा के पौराणिक रहस्य

छठ पूजा

इस पूजा के पीछे कुछ वैज्ञानिक और पौराणिक रहस्य भी छिपे हुए हैं, जो इस त्योहार की महत्ता को और बढ़ाते हैं:

  • सूर्य देव की आराधना का वैज्ञानिक पक्ष
    सूर्य हमारे जीवन का मुख्य स्रोत हैं और सूर्य की किरणों से हमें जीवनदायिनी ऊर्जा मिलती है। सुबह और शाम के समय सूर्य की किरणों का शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इन किरणों के संपर्क में आने से रोगों से मुक्ति और मन की शांति मिलती है। छठ पूजा में सूर्योदय और सूर्यास्त के समय अर्घ्य देने की परंपरा है, जो स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक मानी जाती है।
  • सात्विक भोजन और स्वास्थ्य लाभ
    छठ व्रत में प्रसाद के रूप में मुख्य रूप से कच्चे और सात्विक भोजन का ही सेवन किया जाता है। यह पूजा के दौरान व्रत रखने से शरीर की शुद्धि होती है और सात्विक आहार से शरीर को शांति मिलती है। फल, गन्ना, ठेकुआ आदि का सेवन शरीर को प्राकृतिक रूप से ऊर्जा प्रदान करता है और स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है।
  • जल में खड़े होकर अर्घ्य देने का महत्व
    जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। जल में खड़े होकर सूर्य की किरणों को निहारने से आंखों की रोशनी बढ़ती है और मानसिक शांति मिलती है। साथ ही, जल की ठंडक और सूर्य की गर्मी मिलकर शरीर को संतुलित रखती हैं।

छठ पूजा के अनसुने पहलू

छठ पूजा

छठ पूजा को लेकर कुछ खास अनसुने पहलू भी हैं जो इसे एक अद्वितीय पर्व बनाते हैं:

  1. किसी भी प्रकार के पंडित या पुरोहित की आवश्यकता नहीं होती – छठ पूजा एकमात्र ऐसा पर्व है जो बिना पंडित या पुरोहित के सम्पन्न किया जाता है। यह पूरी तरह से महिलाओं द्वारा संचालित होता है, हालांकि पुरुष भी इस पूजा में भाग ले सकते हैं।
  2. पूरे परिवार की सहभागिता – छठ पूजा में पूरा परिवार मिलकर व्रत, पूजा और प्रसाद बनाने में शामिल होता है। यह पर्व परिवार के बीच सामंजस्य और एकजुटता को बढ़ावा देता है।
  3. कठिन नियमों का पालन – इस व्रत में कठिन नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है। व्रती को चार दिन तक सात्विक भोजन करना होता है और व्रत के दौरान पूरा संयम रखना होता है। यह त्याग, समर्पण और शुद्धता का प्रतीक है।
छठ पूजा

छठ पूजा एक ऐसा पर्व है जो श्रद्धा, प्रेम और विश्वास का अद्वितीय संगम है। इसकी परंपरा न केवल भारतीय समाज के धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को सहेजती है, बल्कि मानवता को प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहने का संदेश भी देती है।

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