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1 Jul 2025, Tue

“शारदा सिन्हा: छठ महापर्व की अमर आवाज़ और उनकी अनमोल धरोहर”

शारदा सिन्हा

शारदा सिन्हा, जिन्हें “बिहार की स्वर कोकिला” और “अमर आवाज़” के रूप में जाना जाता है, भारतीय लोक संगीत के एक अनमोल रत्न हैं। उन्होंने अपने गीतों और अपनी मधुर आवाज़ से बिहार के लोकगीतों को सिर्फ भारतीय श्रोताओं में ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में लोकप्रियता दिलाई है। विशेष रूप से छठ महापर्व के लिए गाए गए उनके गीत हर वर्ष इस पर्व के दौरान घर-घर में गूंजते हैं और भावुकता, श्रद्धा तथा भक्ति से भर देते हैं। आइए जानते हैं शारदा सिन्हा की इस यात्रा, उनकी लोक संगीत में योगदान, और छठ महापर्व से उनके अटूट संबंध।

शारदा सिन्हा

शारदा सिन्हा का प्रारंभिक जीवन और संगीत में रुझान

शारदा सिन्हा का जन्म बिहार के समस्तीपुर जिले में 1952 में हुआ था। उन्होंने अपना प्रारंभिक जीवन इसी छोटे से शहर में बिताया, और उनकी शिक्षा-दीक्षा भी यहीं हुई। बचपन से ही उनके भीतर संगीत के प्रति एक गहरा लगाव था। उन्होंने अपने संगीत की शिक्षा बिहार के पारंपरिक लोकगीतों के माध्यम से शुरू की। बाद में, उन्होंने शास्त्रीय संगीत का भी विधिवत प्रशिक्षण लिया, जिससे उनकी गायन शैली और भी परिष्कृत हो गई।

शारदा सिन्हा

लोक संगीत में अद्वितीय योगदान

शारदा सिन्हा ने सिर्फ लोकगीत गाने तक ही सीमित नहीं रहीं, बल्कि उन्होंने बिहार और उत्तर भारत के पारंपरिक लोकगीतों को एक नई पहचान दी। उनकी मधुर आवाज़ और उनकी गायन शैली ने ऐसे गीतों को लोकप्रियता दी, जो पहले केवल बिहार और उसके आस-पास के क्षेत्रों में ही सुने जाते थे। शारदा सिन्हा ने शादी-ब्याह के गीतों, फगुआ, कजरी, और छठ महापर्व के गीतों को अपने गायन के माध्यम से एक नई पहचान दी है। उनके गीतों में हमेशा एक सादगी और दिल को छू लेने वाला भाव होता है, जो श्रोताओं को अपनी संस्कृति और परंपराओं से जोड़ता है।

छठ महापर्व में शारदा सिन्हा का योगदान

छठ महापर्व बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे सूर्य देवता और छठी मईया की उपासना के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व में गाए जाने वाले गीत लोगों के दिलों में बसे होते हैं, और शारदा सिन्हा की आवाज़ में गाए गए गीतों ने इस पर्व को एक नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया है। उनके प्रसिद्ध गीत जैसे “कांचे ही बांस के बहंगिया,” “हे गंगा मईया तोहे पियरी चढ़ाइबो,” और “पवन चली संगे-संगे” हर साल छठ पूजा के दौरान घर-घर में बजते हैं।

शारदा सिन्हा

शारदा सिन्हा के छठ गीत केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि श्रद्धा और भक्ति की भावना से ओत-प्रोत होते हैं। उनकी आवाज़ में ऐसा जादू है कि लोग उनकी गायकी में डूब जाते हैं और स्वयं को उस वातावरण में महसूस करते हैं, जहाँ वो छठ मईया और सूर्य देवता की पूजा में मग्न होते हैं। उनका संगीत भावनाओं को इतनी गहराई से छूता है कि लोग उनकी गायकी में एक दिव्यता का अनुभव करते हैं। यही कारण है कि छठ महापर्व के समय शारदा सिन्हा के गीतों के बिना यह त्योहार अधूरा माना जाता है।

शारदा सिन्हा का संगीत और भारतीय संस्कृति का प्रतीक

शारदा सिन्हा के गीत केवल गीत नहीं, बल्कि बिहार की संस्कृति, परंपरा और मूल्यों का प्रतीक हैं। उनकी आवाज़ में गाए गए गीत भारतीय संस्कृति के हर पहलू को दर्शाते हैं। चाहे वह ग्रामीण जीवन का सादापन हो, या त्योहारों की उमंग, शारदा सिन्हा के गीतों में हर चीज़ की झलक मिलती है।

उनके गाने केवल छठ पूजा तक सीमित नहीं रहे, बल्कि होली, सावन, और विवाह जैसे अन्य पर्वों और संस्कारों के गीत भी उन्होंने गाए हैं। उनके गाए गीत जैसे “सुहाग के ललकारा,” “होली खेले रघुवीरा,” और “कजरी” भी आज के समय में उतने ही लोकप्रिय हैं। इन गीतों में वो भाव और गहराई होती है जो सीधे श्रोताओं के दिल में उतर जाती है।

पुरस्कार और सम्मान

शारदा सिन्हा

शारदा सिन्हा के इस अनमोल योगदान को भारत सरकार ने भी सराहा है। उन्हें 2018 में पद्म भूषण और इससे पहले पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। ये सम्मान उनके द्वारा भारतीय लोक संगीत में दिए गए अद्वितीय योगदान की मान्यता हैं। इसके अलावा, उन्हें कई अन्य राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले हैं। उनकी संगीत यात्रा को देखते हुए आज के युवा कलाकार भी उनसे प्रेरणा लेते हैं और अपने क्षेत्रीय संगीत को देश और दुनिया तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं।

शारदा सिन्हा का स्थायी प्रभाव और धरोहर

शारदा सिन्हा ने भारतीय लोक संगीत में एक ऐसी धरोहर बनाई है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी। उनकी आवाज़ में गाए गए गीत हमें अपनी संस्कृति और परंपराओं से जुड़े रहने की प्रेरणा देते हैं। उनकी गायकी सिर्फ संगीत नहीं, बल्कि एक एहसास, एक जुड़ाव और अपनेपन की भावना है। वे अपने गीतों के माध्यम से उस समर्पण और भक्ति को दर्शाती हैं, जो आज के शहरी जीवन में खोती जा रही है।

शारदा सिन्हा की धरोहर में वह मिठास और मधुरता है, जो न केवल बिहार, बल्कि पूरे देश की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है। उनका संगीत एक ऐसी आवाज़ है, जो हमेशा छठ महापर्व, होली, और अन्य पारंपरिक उत्सवों को जीवित रखेगी और हमें अपनी जड़ों से जोड़ेगी।

निष्कर्ष

शारदा सिन्हा का संगीत हमें सिखाता है कि लोकगीतों में वो शक्ति होती है, जो लोगों के दिलों को छू सकती है और उन्हें अपनी संस्कृति से जोड़ सकती है। शारदा सिन्हा की आवाज़ और उनके गीतों में वो खासियत है, जो उन्हें एक अमर आवाज़ बनाती है। उनके गाए हुए छठ के गीतों के बिना यह पर्व अधूरा लगता है। शारदा सिन्हा की इस अनमोल धरोहर के लिए हम सब उनके आभारी हैं। उनके संगीत में वो जादू है, जो समय के साथ भी फीका नहीं पड़ता और यह हमेशा हमें अपने भारतीय होने का गर्व महसूस कराता रहेगा।

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